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बुधवार, 22 जून 2016

कुर्सी

एक कहानी सुनाता हूँ
जो आँखों की बयानी है,
वो कुर्सी जो बैठी है
हुकूमत की निशानी है।

राजा की तरह उसपर
जो इंसान है बैठा,
गलतफहमी में रहता है
कि भगवान है बैठा। 

जी हुज़ूरी की यहाँ
वो सरकार चलाता है,
है धोखे में पड़ा
कि संसार चलाता है।

अमीरों की है सुनता
बस पैसा उगाता है,
ज़मीनें बंजर हो रहीं, देखो
किसान फंदा लगाता है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. अच्‍छा लगा आपके ब्‍लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....

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