बहुत समय बाद कुछ लिखना चाहा
तो कलम की जगह अपना मोबाइल उठाया
ज़िन्दगी की खिटपिट, और
मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे
खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे
खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?