Blogoday


CG Blog

रविवार, 26 मई 2013

अब भी बाकी है

न अरमान खुशियों के

न चाहत बुलंदी की
अदद सी ज़िन्दगी दे दे
हो ज़रा सी शान्ति जिसमे ..

जीउँ मैं बेफ़िक्री से
जिया है अब तलक जैसे
ना ही हँसना किसी पे
न रोऊँ अपनी हालत पे ...

बुराई है मुझमे भी
बुराई है ज़माने में
नहीं बनती हम दोनों की
क्यूँ लगा है आज़माने में ?

भला हूँ दूर मैं इससे
भला है दूर ये मुझसे
ज़रूरी सब की खुशियाँ हैं
क्यूँ लगा है मिटाने में ?

अकेला कल तलक भी था
अकेला अब तलक भी हूँ
तेरी नज़रें इनायत हैं
तेरी मेहेरबानी है ...

चला हूँ ढूँढने खुद को
न जाने पाऊंगा कब तक
बेमानी रिश्ते दिए तूने
यूँ निभाऊंगा कब तक ..

मिले तुम आज फुर्सत में
तो थोड़ी गुफ्तगू कर ली
ये लम्बी कहानी है
कहना अब भी बाकी है ..

ख़ुदा है तू अगर सच मुच
करम ये आखरी कर दे-

दिखा दे रौशनी इतनी
कि  बना लूं रास्ता अपना
रुका था साँस लेने को
कि चलना अब भी बाकी है।

2 टिप्‍पणियां: