मैं तपता हूँ मैं गलता हूँ
किस्मत कह लो, सूरज कह लो
फिर उगता हूँ गर ढलता हूँ
उजियारे सब तुमही रख लो
अंधियारे में मैं रहता हूँ
जुगनू कह लो, दीपक कह लो
फिर जलता हूँ गर बुझता हूँ
तुमको मंजिल हो मुबारक,
मैं राहों से पत्थर चुनता हूँ
इंसाँ कह लो, झरना कह लो
फिर उठता हूँ गर गिरता हूँ
नियति चाहे जो भी कर ले
उम्मीदों पे मैं पलता हूँ
जीवन कह लो, सृष्टि कह लो
फिर बनता हूँ गर मिटता हूँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-06-2016) को "अपना भारत देश-चमचे वफादार नहीं होते" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंसादर....
उम्मीद बहुत जरूरी है जीने के लिए ... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंउम्मीद पर दुनिया हैं------------
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत सुंदर
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