हिये चोट ना राखिये, मन पर मन भर भार।
धरा चीर ऊपर निकले, तरु धरे आकार ।।
मीठा-मीठा जग कहे, छिपी तेज तलवार।
दो लोचन पीछे धरो, बचे पीठ का वार ।।
प्रसून प्यारे भ्रमर को, जुगनू को है रात।
अपने हिस्से में दर्द, अपनी अपनी बात ।।
निद्रा ही संसार है, सूने होश हवास।
सपने उड़ते देखिये, खग बन बन आकाश ।।
विरह वेदना से भरी, बैठी लेकर आस।
साजन सरहद पर डटे, जीतेगा विश्वास ।।
फलीभूत जब धारणा, मन में रहे उमंग।
गाँधी होते खुश वहाँ, सब मिल रहते संग ।।
धरा चीर ऊपर निकले, तरु धरे आकार ।।
मीठा-मीठा जग कहे, छिपी तेज तलवार।
दो लोचन पीछे धरो, बचे पीठ का वार ।।
प्रसून प्यारे भ्रमर को, जुगनू को है रात।
अपने हिस्से में दर्द, अपनी अपनी बात ।।
निद्रा ही संसार है, सूने होश हवास।
सपने उड़ते देखिये, खग बन बन आकाश ।।
विरह वेदना से भरी, बैठी लेकर आस।
साजन सरहद पर डटे, जीतेगा विश्वास ।।
फलीभूत जब धारणा, मन में रहे उमंग।
गाँधी होते खुश वहाँ, सब मिल रहते संग ।।
प्रयकस तो अच्छा है दोहों का मगर पहले और तीसरे दोहे में कुछ गड़बड़ है।
जवाब देंहटाएंमहोदय टिप्पणी के लिए आभार। कृप्या गड़बड़ी पर प्रकाश डालें तथा मार्गदर्शन की कृपा करें।
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