तुम्हें क्या लगता है
यूँ हाथ झटक कर चले जाओगे
और ये रिश्ता टूट जायेगा
जो बना है
कई रिश्तों को ताक पर रख कर?
तुम्हें क्या लगता है
क्या इतना आसान है
पेड़ की जड़ों से
मिट्टी निकाल लेना
या
बारिश से, झरनों से,
हवा से
संगीत मिटा देना?
क्या इतना आसान है
पेड़ की जड़ों से
मिट्टी निकाल लेना
या
बारिश से, झरनों से,
हवा से
संगीत मिटा देना?
तुम्हें क्या लगता है
लहरें तटों से
गुस्से में टकराती हैं
या
भौंरे फूलों को
चोट पहुंचाते हैं?
लहरें तटों से
गुस्से में टकराती हैं
या
भौंरे फूलों को
चोट पहुंचाते हैं?
ये धरती, सूरज, चाँद
भी हम जैसे हैं
ग्रहण तो लगता है
रिश्ते नहीं टूटते
भी हम जैसे हैं
ग्रहण तो लगता है
रिश्ते नहीं टूटते
पता है? मुझे लगता है
ये ग्रहण भी मिट जायेगा
और ये पेड़, मिट्टी, बारिश, झरने, हवा
ये भौंरे, ये फूल
सभी अपने-अपने रिश्तों में रम जाएंगे
ये ग्रहण भी मिट जायेगा
और ये पेड़, मिट्टी, बारिश, झरने, हवा
ये भौंरे, ये फूल
सभी अपने-अपने रिश्तों में रम जाएंगे
और हम चल रहे होंगे
इनके बीच, फिर से
हाथों में हाथ लिए
तुम्हे क्या लगता है?
इनके बीच, फिर से
हाथों में हाथ लिए
तुम्हे क्या लगता है?
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-06-2016) को "इलज़ाम के पत्थर" (चर्चा अंक-2384) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सही, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंस्नेह के लिए आभार संजय जी...
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