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रविवार, 3 अप्रैल 2016

तू क्यों ना माने पगली तू क्या है

अंधियारे से इस गगन में
हिचकोले खाते जीवन में
उम्मीदों की है तू बदली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है

रत्न भरें हों रतनालय में
भले जड़े हों देवालय में
कोहिनूर है तू ही असली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है

सात जनम की बात न जानूँ
हस्त गणित की बात न मानूँ
जिंदगी तू ही अगली पिछली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है

मुस्कानों के मोती ले ले
आँखों की ये ज्योति ले ले
निर्मल सरल हृदय ये तेरा
शरारत वाली बातें ले ले

प्रमाणों का ढ़ेर है पगली और क्या है
फिर भी क्यों ना माने पगली तू क्या है

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