अंधियारे से इस गगन में
हिचकोले खाते जीवन में
उम्मीदों की है तू बदली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है
रत्न भरें हों रतनालय में
भले जड़े हों देवालय में
कोहिनूर है तू ही असली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है
सात जनम की बात न जानूँ
हस्त गणित की बात न मानूँ
जिंदगी तू ही अगली पिछली और क्या है
तू क्यों ना माने पगली तू क्या है
मुस्कानों के मोती ले ले
आँखों की ये ज्योति ले ले
निर्मल सरल हृदय ये तेरा
शरारत वाली बातें ले ले
प्रमाणों का ढ़ेर है पगली और क्या है
फिर भी क्यों ना माने पगली तू क्या है
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जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंस्नेह बनाये रखें
सादर..!
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